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तीसरा कंडोम (2)

शुरू-शुरू में उसे सचमुच हैरानी होती थी कि क्या वह सचमुच सभ्य समझदार-सुसंस्कृत लोगों के बीच में है, पर अब लगता है कि जिसे वह जानता रहा है वह सभ्य संस्कृति नहीं थी, असली संस्कृति तो यहाँ है, वह है जो इन्होंने अपना रखी है. फिर भी उसे कभी-कभी कुछ बुरी तरह खटकने लगता है. शायद इसीलिए द्वितीय पुरुष उससे कहता है  तू अभी तक प्रोफेशनल नहीं हो पाया.
इतिहास इस बार एक लंबा घूंट भरता है.

प्रथम पुरुष अपने मोबाइल से बात कर रहा है. स्पीकर उसने जानबूझ कर आॅन किया हुआ है, वह भी सुनता है और द्वितीय पुरुष भी  आॅम, ट्रेप्ड इन दिस ब्लडी जाॅम बट इट विल टेक मी हार्डली फिफ्टीन टूवेन्टी मिनिट्स टू रीच देअर... साॅरी टू कीप यू वेटिंग...

द्वितीय पुरुष ने अपना ऊध्र्व वस्त्रा उतार फर्श पर फेंक दिया है. उसके चेहरे पर इस बार जो मुस्कान उतर रही है वह उसकी तितली मूंछों से लेकर ओठों और गालों तक पसर गयी है. इतिहास जानता है कि जब भी ऐसा होता है द्वितीय पुरुष को कोई न कोई बात याद आ रही होती है जिसे वह मजे ले-लेेकर सुनाना चाहता है... डू यू नो व्हाॅट हैपिन्ड द अदर डे... उसे चढ़ गयी है.

वह शुरू हो चुका है... आई हैड काॅल्ड माई दीक्षा... शी केम इन, एंड यू नो. वह समझती थी कि मैं अकेला हूँ... शी डिडन्ट नो आई नेवर डू एनीथिंग विदआउट माई फ्रेंन्ड, माई बाॅस माई गुरु... वह अपना हाथ प्रथम पुरुष के कंधे पर रख देता है...
”यू नो इतिहास, कमरे में हम दोनों को एक साथ देखकर वह परेशान हो गयी थी. मैंने कहा, परेशान होने की जरूरत नहीं है... ये मेरा यार है... तेरे बहुत काम आएगा... जानता है इतिहास, वह क्या बोली  बट आई हैव आॅनली वन कंडोम...“
द्वितीय पुरुष जोर-जोर से हँस रहा है.
प्रथम पुरुष उसकी हँसी में साथ दे रहा है.

इतिहास हँसना चाहता है, पर हँस नहीं पा रहा. उसे भीतर से झोंक-सी उठती महसूस होती है. झोंक शब्दों में बदल जाती है  तुम लोग गंदा खेल खेल रहे हो. सीधी-सादी लड़कियों को करप्ट कर रहे हो. हाउ कैन यू से यू आर रिसपान्सिबल पीपुल... इट इज नाॅसिएटिंग...

प्रथम पुरुष और द्वितीय पुरुष की हँसी पल भर के लिए थम जाती है. पहले प्रथम पुरुष सँभलता है, ”साले जब तुझे चढ़ जाती है तब ज्यादा संतई सूझती है...“
द्वितीय पुरुष गुस्से से इतिहास को देखता है, ”अबे हम क्या करप्ट करने किसी के घर जाते हैं... हम क्या उन्हें टीवी में आने का एंकर बनने का न्याता देने जाते हैं... कोई खुद हमारे सामने खोल खड़ी हो जाय तो हम क्या करें...“

”डोंट बी वल्गर...“ इतिहास लड़खड़ाती-सी आवाज में प्रतिवाद करना चाहता है.
”देख इतिहास,“ प्रथम पुरुष बोलता है, देयर इज नथिंग लाइक बल्गर इन मीडिया... अब तक तुझे यह बात समझ लेनी चाहिए. मीडिया में सिर्फ अंडरस्टंेडिंग होती है वल्गर कुछ नहीं होता... बस नजारिये की बात है.“

”इसकी समझ में यही बात नहीं आएगी,“ द्वितीय पुरुष कहता है, ”ये तो यह भी नहीं मानेगा कि लड़कियों से ज्यादा हमें भुगतना पड़ता है. लड़की तो घंटे भर में काम खत्म कर के चल देती है. फिर उसका चाहा करने में हमें क्या-क्या पापड़ बेलने पड़ते हैं ये हमी जानते हैं. मैनेजमेंट के आगे हमेशा हमारी पैंट उतरी रहती है...“

”सवाल पैंट उतरी रहने का ही नहीं है,“ प्रथम पुरुष डिबेट खड़ी करता है, ”सवाल यह है कि जो लड़की हमारे पास आती है वह क्यों आती है. तुम कहो कि उसकी मजबूरी उसे यहाँ खींच कर लाती है तो यह कोई लाजिक नहीं है।. इट इज हर एंबीशन दैट ब्रिंग्स हर हियर. वह अपनी महत्वाकांक्षा की वजह से आती है. टीवी ग्लैमर अट्रेक्ट्स हर।. शी वांट्स टू बी ए सेलिब्रिटी ओवरनाइट लाइक ए फिल्म स्टार. वह नाम चाहती है, पैसा चाहती है, रुतबा चाहती है, एंड पे फाॅर दैट. उसकी वह कीमत चुकाती है...“

”येस, दैट्स राइट. एकदम सही बात है“ द्वितीय पुरुष बहस को आगे बढ़ाता है, ”वी टू पे फाॅर अवर एंबीशन्स. हम मैनेजमेंट के तलवे चाटते हैं. बिग बाॅस के एक इशारे पर कुत्ते की तरह दौड़ पड़ते हैं, जिस पर वह शू करदे उस पर भोंकने लगते हैं... व्हाई फौर. टैल मी, हम ऐसा क्यों करते हंै. बस कुछ होने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए ही तो... बता हम लड़कियों से कहाँ अलग हैं. दे हैव एन ईजी वे बट वी डोन्ट हैव एनी.“

”वन मोर थिंग इज देअर,“ प्रथम पुरुष जोड़ता है, ”वी आॅल आर ह्यूमैन बीइंग्स, वी आर नाॅट गाड्स. हम इंसान हैं. इंसानी कमजोरियाँ हमारे अंदर भी हैं. हम निस्वार्थ भाव से ऐसा नहीं कर सकते कि जो लड़का या लड़की ग्लैमर में खेलना चाहता हो उसे मुफ्त में अपनी गोद उपलब्ध करा दें कि लो बेटा यहाँ बैठकर कबड्डी खेलो. कोई ऐसा क्यों करेगा? वी शुड नेवर फारगेट दैट वी आल आर इन द मार्केट एंड मार्केट हैज ए प्राइस फाॅर एवरीवन. मार्केट में सबकी कीमत है, जो कीमत लेकर बिकता है तो कीमत देकर खरीदता भी है. कोई हमें खरीदता है, किसी को हम खरीदते हैं... हम किसी से जबर्दस्ती नहीं करते, किसी का रेप नहीं करते...“

”समझे मिस्टर इतिहास,“ द्वितीय पुरुष इतिहास को नाम से संबोधित करता है, ”इस सिस्टम में जिंदगी ऐसे ही चलती है. जो लड़की यहाँ आती है वह हमें देती ही नहीं हमसे वसूलती भी है, हम उस लड़की से सिर्फ वसूलते ही नहीं हैं उसे देते भी हैं. एंड वी हैव नो रिमोर्स फाॅर दिस गिव एंड टेक रिलेशनशिप. अंडरस्टेंड.“
इतिहास संकुचित-सा हो उठता है.
राक्षसी हँसने लगती है.

इतिहास सोचता है. सोचता है कि वह प्रथम पुरुष और द्वितीय पुरुष से कहीं ज्यादा जानता है, बस अभी तक पूरी तरह उनके पाले में खड़ा नहीं हो पाया है. वह कभी इधर झूल जाता है कभी उधर.
इतिहास रिमोट फिर दबा देता है.

चैनल अपना विशेष कार्यक्रम दिखा रहा है. कुंड में मुंड. पर्दा भरा हेडर.
एंकर चीख रहा है...  देखिए हमारे चैनल पर पहली बार कहाँ है यह कुंड, किसके हैं इस कुंड से निकले हजारों नरमंुड... कौन पहुँचा था यहाँ, कैसे हुई इनकी मौत...सदी का सबसे बड़ा रहस्य जिसे हम उजागर कर रहे हैं पहली बार...देखना मत भूलिये.
इतिहास के मुँह से गाली निकलते-निकलते रुक जाती है.
वह फिर बटन दबा देता है.

बदला हुआ चैनल बता रहा है कि अब क्या कर रही है पार्वती, किस नयी भूमिका में आ रही है तुलसी, कैसी लगती है बालिका वधू अपनी मूल जिंदगी में...
”सालों के पास समाचार खत्म हो गये हैं“ इतिहास बुद बुदाता है.
वह बटन दबा देता है.

चैनल पर मनोरंजन चैनलों द्वारा प्रसारित किये जा रहे फूहड़ हास्य क्रार्यक्रमों का रिपीट चल रहा है. समाचार चैनल पर मनोरंजनियाँ चैनलों का चुटकुला समाचार अवतार में उदित हो रहा है.
इतिहास के मुँह से मोटी-सी गाली निकलकर कमरे में फैल जाती है. इतिहास फिर बटन दबा देता है.
इस चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज बंपर चल रहा है... राजधानी में सेक्स रैकेट... फ्लैशटेªड में लगी एक दर्जन से ज्यादा लड़कियाँ गिरफ्तार...
प्रथम पुरुष तुरत इतिहास के हाथ से रिमोट झपटता है. वह अपने चैनल पर आता है. वहाँ पानी पर डिस्को चल रहा है. वह बौखला जाता है. उसका हाथ का मोबाइल सक्रिय हो गया है.

द्वितीय पुरुष के चैनल का पर्दा भी खाली है. उसका नशा भी हिरन हो गया है.
दोनों अलग-अलग अपने-अपने मोबाइलों पर चीखने-चिल्लाने लगते हैं... किसका निर्देश किसे मिल रहा है एकाएक समझ में नहीं आता... खबर क्यों नहीं चली अभी तक... सालो पिटवा दोगे हमें... कौन है इनपुट में... ओ वी क्यों नहीं भेजी अभी तक... पहले ब्रेकिंग चलाओ... रिपोर्टर पहुँच गया है तो फीड क्यों नहीं आयी... पानी पर डिस्को चल रहा है तो गिराओ उसे... रिकार्ड कर लो फिर चला देंगे... एंकर को बोलो स्टूडियो पहुँचे... एंकरलिंक कौन बनाएगा... वो नहीं कर पाएगी शीमेल को भेजो... जब तक फीड नहीं आती तब तक पुराना टेप चला दो. लाइब्रेरी से निकालो... चेहर मोजेके कर दो साले किसको पता है नयी फुटेज है कि पुरानी... शाॅट्स एडिट करालो... रिपोर्टर से बोलो लड़कियों के बाइट्स लेगा... एसीपी से बात करना... बीजी जोरदार होना चाहिए.... ग्राफिक्स तैयार रखो... खबर पर जमकर खेलना है...

दोनों हाँफ रहे हैं.
दोनों के चैनलों पर सेक्स रैकेट उतर आया है. दोनों की  टीमें खबर पर खेलने में जुट गयी हैं.
इतिहास जानता है कि यह खेल अब कई घंटो तक चलेगा. पानी, बिजली, महँगाई सब व्हील से उतर जाएंगे. पुलिस की गिरफ्त में आयी लड़कियाँ हेडलाइन बनकर न्यूज की छाती पर दौड़ती रहेंगी.
”यार हमने खबर को खत्म कर दिया है,“ इतिहास ने अपने दार्शनिक अंदाज में फिर एक फिकरा उछाल दिया है. शायद मजा लेने के लिए.
”तू साले चूतिया ही रहेगा,“ प्रथम पुरुष सम पर आते हुए कहता है, ”खबर है क्या. खबर वह जिसे दर्शक देखना चाहता है और जो बिकती है...“

द्वितीय पुरुष बात को बीच से लपक लेता है, ”न्यूज इज नथिंग बट ए प्रोडक्ट. बाजार में केवल वही प्रोडक्ट टिकता है जिसे बेचा जा सके, जिसे बेचकर पैसा बनाया जा सके. जिस प्रोग्राम की टी आर पी नहीं हो वह क्या खाक बिकेगा.“

”डर, लालच, उम्मीद और गुदगुदी अच्छे बिकते हैं,“ प्रथम पुरुष जैसे अपना सिद्धांत प्रतिपादित करता है, ”खबर को इनके इर्द-गिर्द घुमा दो, अपने आप टी आर पी ले आएगी.“

द्वितीय पुरुष का हिरन हुआ नशा फिर बाड़े मंे आ गया है. वह प्रथम पुरुष के आगे गिलास समेत हाथ जोड़कर झुक गया है, ”धन्य हो गुरु. मीडिया तुम्हारा लोहा ऐसे ही थोड़े मानता है.“

इतिहास बहस को यहाँ समाप्त नहीं करना चाहता. वह इन दोनों महापुरुषों के तर्कों के सहारे स्वयं अपने भीतर उठते गैर-प्रोफेशनल तर्कों को सुलाना चाहता है. अपनी गाहे-ब-गाहे सर उठा देने वाली दुविधा से पिंड छुड़ाना चाहता है. वह कहता है, ”हमारी पत्राकारीय परंपरा में खबर की यह परिभाषा नहीं है.“

”परंपरा भी बदलती है और परिभाषा भी,“ प्रथम पुरुष अपने गिलास में थोड़ी और उंडेल देता है, ”यह खुलेपन का युग है, न इसमें पुरानी परंपरा चल सकती है न परिभाषा.“
”देख भई,“ द्वितीय पुरुष बोलता है, ”सीधी बात यह है कि जो मालिक पूँजी लगाता है वह रिटर्न चाहता है.“

अपना नाम सुन राक्षसी सतर्क होती है.
प्रथम पुरुष समर्थन करता है, ”कोई मालिक, कोई कंपनी दानखाता नहीं खोलते. जो पूँजी लगाएगा वह मुनाफा चाहेगा. मुनाफा बिकने वाली जिंस से होता है. चाहे साबुन हो या समाचार... और कंपनी हमें लाखों की सेलरी देती है तो मुनाफा कमाने के लिए देती है न कि अपना खजाना लुटाने के लिए. इफ वी वांट टु सरवाइव वी विल हैव टू लुक आॅफ्टर कंपनीज इन्ट्रेस्ट....“
राक्षसी मुस्कराने लगती है.

इतिहास मजे लेने लगता है ”ऐसा है तो हम पत्राकार क्यों हैं?“ एजेंट क्यों नहीं है, दल्ले क्यों नहीं हंै, मालिक की पूँजी के पिल्ले क्यांे नहीं है?“
”चुप साले, वी आर द थर्ड ईस्टेट आॅफ द स्टेट,“ प्रथम पुरुष कहता है.
”थर्ड नहीं फोर्थ,“ इतिहास सुधार करता है.
”नो, वी आर थर्ड ईस्टेट आफ्टर लेजिस्लेटिव एंड एक्जीक्यूटिव... वी आर द मोस्ट पावरफुल पीपुल...“
”और ज्यूडिशियरी...“

”फक इट, देअर इज नो रिअल पावर इन इट. इट इज आॅनली ए करक्टिव एजेंसी. देखने में ताकतवर लगती है पर है नहीं. बता कितने ताकतवरों का फंसा पाती है? बोल मीडिया के कितने लोगों का अब तक कुछ बिगाड़ पायी है? ज्युडिशियरी कुछ नहीं है. राज्य का तीसरा खंबा हम हैं....“

”आप धन्य हैं गुरु,“ द्वितीय पुरुष फिर प्रथम पुरुष के आगे झुक गया है. उसकी पिछाई इतिहास की तरफ हो गयी है.

इतिहास की जोरदार इच्छा होती है कि एक जोरदार लात वहाँ जमा दे. पर किसी तरह वह खुद को नियंत्रित करता है.

इतिहास द्वितीय पुरुष को सीधा खड़ा होते हुए देखता है. फिर उस मुस्कान को देखता है जो आँखों में इनजेस्ट होकर मूंछों की तरफ एडिट हो रही है. यह फिर कुछ ऊलजुलूल बोलेगा. वह इंतजार करता है.

द्वितीय पुरुष बारी-बारी से उन दोनों की ओर देखता है, फिर कहता है ”गुरु आम टेलिंग यू द मोस्ट इंपार्टेंट सीक्रेट आॅफ अवर कंपनी... बट वादा करो तुम लोग किसी से बताओगे नहीं.“

दोनों के कान द्वितीय पुरुष से लग जाते हैं.
”टाॅप मैंनेजेमेंट ने कुछ नयी फीमेल एंकर और रिपोर्टर भर्ती करने की परमीशन दी है,“ द्वितीय पुरुष अपनी एक आँख दबा देता है.
”तो इसमें कौन-सी नयी बात है, यह तो समय-समय पर हर चैनल करता है,“ प्रथम पुरुष कहता है.
इतिहास को भी इस सीक्रेट में कुछ सीक्रेट नहीं लगता.
”नयी बात है गुरु, बड़ी धांसू नयी बात है,“ द्वितीय पुरुष फिर से अपनी आँख दबा देता है.
”अबे तो बोल ना. खामखां मिस्ट्री क्यों क्रिएट कर रहा है. प्रथम पुरुष की आवाज में झंझुलाहट है.
”देखो गुरु, पहले कहे देता हूँ हमारा आइडिया मत मार लेना... दोस्ती अपनी जगह और बिजनेस अपनी जगह. वी विल हैव टु कीप टू थिंग्स सेपरेट.“ द्वितीय पुरुष बहक रहा है.
”अबे कुछ आगे बोलेगा भी...“
”ये एंकर-रिपोर्टर पी आर के लिए होंगी, इक्सक्लूजिव पी आर के लिए,“ द्वितीय पुरुष रहस्योद्घाटन करता है.
इतिहास चैकन्ना होता है.

”इसमें रहस्य क्या है. व्हाई डोन्ट यू कम डायरेक्ट,“ प्रथम पुरुष झंुझलाता है.
”अब भी नहीं समझे,“ द्वितीय पुरुष ने आँखें मिचमिचायीं, गुरु ये लड़कियाँ अक्सर टीवी पर दिखाई जाएंगी, इनको सेलेब्रिटी स्टेटस मिलेगा. फिर ये कंपनी के कस्टमर्स के पास जाएंगी. कस्टमर आब्लाइज्ड महसूस करेगा, कंपनी की लाइन फोलो करेगा. नेता अधिकारियों से भी ये ही काम निकलवाएंगी. जरूरत पड़ने पर रिपोर्टिंग के बहाने एस्कास्र्ट भी करेंगी. आया समझ में“ द्वितीय पुरुष ने खीसंे निपोर दी हैं.
इतिहास को लगता है, कोई उल्लू का पट्ठा हंस रहा है.
प्रथम पुरुष शायद इस योजना को अपनी कंपनी के लिए सोच रहा है.
”इट विल बी ए टीम आॅफ हाईली पेड ब्यूटीफुल एंड स्मार्ट गल्र्स. ये लड़कियाँ स्पेस सेलिंग में भी मार्केटिंग टीम की मदद करेंगी.“ द्वितीय पुरुष ने जैसे पूरी योजना का खुलासा किया है. 
”इन्हंे अप्वाइन्ट कौन करेगा और दीक्षा कौन देगा.“ प्रथम पुरुष एक गंभीर सवाल पूछता है.
”मैं सलेक्सन कमेटी का डिप्टी हेड हूँ,“ द्वितीय पुरुष का सीना फूला हुआ लग रहा है.
”हेड कौन है?“ प्रथम पुरुष पूछता है.
”हू एल्स, चेअरमैन आॅनली,“ द्वितीय पुरुष का फूला हुआ सीना और फूल जाता है. वह कहता है, ”एक्चुअली, इट बाज बेसिकली माई आइडिया.“

इतिहास वैसे वहीं पहुँचने की कोशिश कर रहा था जहाँ उसके ये दो दोस्त पहुँचे हुए थे, फिर भी उसका मन हो रहा है कि अपना जूता उतारे और द्वितीय पुरुष की खोपड़ी पर दबादब बरसा दे... अपनी इस इच्छा को भी वह दबा गया है. इस समय वह जहाँ बैठा हुआ है वहाँ उसकी यह इच्छा अवैध संतान की तरह ज्यादा है. वह कहता है, ”तुम अपने चैनल को रंडीखाना बना दोगे.“
”क्या इतिहास,“ द्वितीय पुरुष बेशर्मी से हंसा है, ”अभी तुझे कोई कमी नजर आती है क्या?“

प्रथम पुरुष भी मुस्करा रहा है.
इतिहास का टेप फिर रिवांइड होता है. फ्रेम में पेंट्री के एक कोने में अकेली बड़बड़ाती लड़की है... कोई लड़की यहाँ कैसे काम कर सकती है... छिछोरियों ने हम जैसियों का जीना मुहाल कर रखा है...

वह सहानुभूति से उस लड़की की ओर देखता है.
लड़की झट से आँसू पोंछकर पेंट्री से बाहर निकल गयी है.
वह खुद को और अधिक लाचार महसूस कर रहा है.
”अबे यार!“ द्वितीय पुरुष का विस्यमयबोध फूटता है.
वह घड़ी देख रहा है तो मतलब दीक्षा के विलंब से है.
इतिहास पुराने फ्रेम से निकलकर कमरे के फ्रेेम में आ गया है.
वह चैनल बदल देता है.

चैनल बलात्कार पर खेल रहा है... हमारे हाथ लगी है बलात्कारी दरिंदों की एक्सक्लूसिव तस्वीरें... हम दिखा रहे हैं आपको एक-एक बलात्कारी की तस्वीर... यही वे लोग हैं जो मासूम लड़कियों को फंसाते थे, उन्हें सड़क से उठाते थे. ये दरिंदे एक के बाद एक लड़की के साथ बलात्कार करते थे. इतना ही नहीं बलात्कार का एमएमएस बनाते थे. फिर अश्लील एमएमएस को सार्वजनिक करने की धमकी देकर लड़कियों को ब्लैकमेल करते थे... देखिये बलात्कार की पूरी दास्तान... चैनल दिखा रहा है एक-एक बलात्कारी की तस्वीर... बलात्कारी नंबर एक, बलात्कारी नंबर दो... पर्दे के फ्रेम में बलात्कारियों की विंडो बनती जा रही हैं... एंकर चीखता जा रहा है...

इतिहास को लगता है कि उसके साथ सामूहिक बलात्कार होने जा रहा है. उसे उबकाई सी महसूस होती है. वह रिमोट से टीवी आॅफ कर देता है. पर्दा ब्लैंक हो गया है. इतिहास सोफे से उठता है. टीवी केबिनेट की दराज से एक नंगी वीसीडी निकालकर प्लेयर में लगा देता है.

टीवी के पर्दे पर अब वस्त्राविहीन मादरजाद नंगे नर-मादा दृश्य उभर रहे हैं. उनके मुँह से आदिम आवाजें निकल रही हैं.
इतिहास महसूस करता है कि डरावनी अश्लीलता से निकलकर कमरे का वातावरण कुछ श्लील हो गया है.

प्रथम पुरुष टीवी की ओर देख रहा है, हँस रहा है.
द्वितीय पुरुष ने अपना अंडरवियर भी उतारकर फर्श पर फेंक दिया है.
इतिहास को वह भी कम अश्लील लग रहा है.
इतिहास अपनी आँखें बंद कर लेता है.
उसके कानों से द्वितीय पुरुष की आवाज टकराती है...
”गुरु अपनी इस दीक्षा को बता दिया है कि दूसरे कंडोम की जरूरत भी पड़ेगी.“
इतिहास को अश्लीलता झटके से वापस लौटती लगती है.
उसके कानों से प्रथम पुरुष की आवाज टकराती है  ”इतिहास पहले बताता तो उससे तीसरे कंडोम के लिए भी कह देता.“
और इतिहास को लग रहा है जैसे मीडिया तीसरा कंडोम बनकर उसके ऊपर पूरा का पूरा चढ़ गया है और वह बिना किसी अवांछित खतरे के बाजार में नंगे लेटे विचार सिद्धांत, भाषा, संस्कृति, सभ्यता, सत्ता की देह में कहीं भी घुसने को तैयार हो रहा है.
राक्षसी हँस रही है. हँस रही है. 
 
Vibanshu Divyalजन्म: 3 फरवरी 1946, आगरा
शिक्षा: एम.ए. (अंग्रेजी)
कृतियाँ: तीन उपन्यास और चार कहानी संग्रह प्रकाशित व चर्चित. सामाजिक विषयों पर निरन्तर लेखन हिन्दी अंग्रेजी स्तम्भ लेखक.
लम्बे समय तक राष्ट्रीय सहारा से सम्बद्ध रहे. साप्ताहिक परिशिष्ट हस्तक्षेप के प्रभारी तथा अखबार के स्थानीय सम्पादक पद पर कार्य. वर्तमान में सहारा इंडिया परिवार से सम्बद्ध तथा स्वतन्त्रा लेखन.
सम्पर्क: 118 डी, पाकिट-बी, दिलशाद गार्डन, दिल्ली
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